अमीरी और गरीबी नहीं देखती साहब,
ये चाय है सबको एक सा सुकून देती है !
सांवला है रंग थोड़ा कड़क मिजाज है,
सुनो तुम पसंद हो मुझे,
तुम्हारा चाय जैसा स्वाद है।
मिलों कभी चाय पर फिर कोई किस्से बुनेंगे,
तुम खामोशी से कहना हम चुपके से सुनेंगे !
चाय के नशे का आलम तो कुछ,
यह है गालिब कोई राई भी दे,
तो अदरक वाली बोल देते हैं !
जैसे शाम ढलती जा रही है,
तुम्हारे संग चाय की तलब,
बढ़ती जा रही है।
सर्दियों के बस दो ही जलवे,
तुम्हारी याद और हाथ में वो चाय !
इश्क में दर्द का होना लाजमी है,
क्योंकि बिना चीनी की चाय फीकी लगती है !
हलके में मत लेना तुम सावले रंग को,
दूध से कहीं ज्यादा देखे हैं शौकीन मैंने चाय के !
ये चाय की मोहब्बत तुम क्या जानो,
हर एक घूँट में एक अलग ही नशा है !
ये चाय की लत भी बड़ी खराब है,
तन्हाई में भी दिलाती तेरी ही याद है !
चाय के बाद दूसरा रंग तुम्हारा है,
जो मुझे सांवला अच्छा लगता है !
मोहब्बत हो या चाय,
एकदम कड़क होनी चाहिए !
ना इश्क ना कोई राय चाहिए
सर्द मौसम है बस चाय चाहिए !!
यादों में आप और हाथ में चाय हो,
फिर उस सुबह की क्या बात हो !
कॉफी वाले तो सिर्फ फ्लर्ट करते हैं,
कभी इश्क़ करना हो तो चाय वालों से मिलना !
दूध से कहीं ज्यादा देखे है
मैंने शौक़ीन चाय के !