ये न समझ के मैं भूल गया हूँ तुझे,
तेरी खुशबू मेरी सांसो में आज भी है,
मजबूरी ने निभाने न दी मोहब्बत,
सच्चाई तो मेरी वफा में आज भी है !
दोनों का मिलना मुश्किल है,
दोनों हैं मजबूर बहुत,
उस के पाँव में मेहंदी लगी है,
और मेरे पाँव में छाले हैं ।
कभी गम तो कभी खुशी देखी,
हमने अक्सर मजबूरी और बेकसी देखी,
उनकी नाराजगी को हम क्या समझें,
हमने तो खुद अपनी तकदीर की बेबसी देखी !
मेरे दिल की मजबूरी को कोई इल्जाम न दे,
मुझे याद रख बेशक मेरा नाम न ले,
तेरा वहम है कि मैंने भुला दिया तुझे,
मेरी एक भी साँस ऐसी नहीं जो तेरा नाम न ले ।
हालात शिखात है लोगो की बातें सुनना और सहन करना,
वरना सब अपने स्वभाव से राजा ही होते हैं ।
क्या बयान करें तेरी मासूमियत को शायरी में हम,
तू लाख गुनाह कर ले सजा तुझको नहीं मिलनी !
ब बदलने की आदत होती है किसी की,
फिर मजबूरियां रखनी होती है भूलने की !
हम तुम में कल दूरी भी हो सकती है !
वज्ह कोई मजबूरी भी हो सकती है !
फिर यूँ हुआ कि जब भी जरुरत पड़ी मुझे,
हर शख्स इत्तफाक से मजबूर हो गया !
गरीब अक्सर तबियत का बहाना बनाकर,
मजबूरियाँ छुपा जाते हैं !
इस सारे जहाँन में एक लड़की पसंद आयी,
और वो भी न मिली तो तकलीफ तो होगी न !
तुम बेवफा नहीं थे ये मैं भी जान गया होता
कभी तुमने अपनी मजबूरी बताई तो होती ।
मोहब्बत किस को कहते हैं,
मोहब्बत कैसी होती हैं,
तेरा मजबूर कर देना,
मेरा मजबूर हो जाना ।
तुम बेवफा नहीं ये तो धड़कने भी कहती हैं,
अपनी मजबूरी का एक पैगाम तो भेज देते !
किसी की अच्छाई का इतना फायदा न उठायें,
कि वो बुरा बनने के लिए मजबूर हो जाए ।
जीने की चाह थी पर मजबूर थे कितने,
तलाश थी हमें तुम्हारी पर तुम दूर थे कितने ।
किसी गिरे इन्सान को उठाने आये या ना आये,
ये जमाने वाले मजबुरी में पड़े इंसान का फायदा,
उठाने जरुर आयेंगे !
क्या गिला करें तेरी मजबूरियों का हम,
तू भी इंसान है कोई खुदा तो नहीं,
मेरा वक्त जो होता मेरे मुनासिब,
मजबूरियों को बेच कर तेरा दिल खरीद लेता !
“मजबूरियॉ ओढ़ के निकलता हूँ घर से आज कल,
वरना शौक तो आज भी है बारिशों में भीगनें का।
मजबूरी हैं सांसों की जो चल रही है,
वरना जिंदगी तो कब की थम गई हैं !