कैद खाने है बिन सलाखो के,
कुछ यूँ चर्चे है तुम्हारी आँखो के !

जो उनकी आँखों से बयां होते हैं,
वो लफ्ज शायरी में कहाँ होते हैं !

चलो हम उजड़े शहर के शहजादे ही सही,
मगर तुम्हारी आँखे बताती है विरान तुम भी हो !

तैरना तो आता था हमें लेकिन,
तेरी आखों में डूब जाना अच्छा लगा !

नशीली आँखों से वो जब हमें देखते हैं,
हम घबराकर आँखें झुका लेते हैं,
कौन मिलाए उनकी आँखों से ऑंखें,
सुना है वो आँखों से अपना बना लेते हैं !