पल पल रोना सिखा दिया तुमने,
अच्छा हुआ की मुझे भुला दिया तुमने।
दोहरी शक्सियत रखनें से इन्कार है हमें,
इसलिए अकेले ही रहना स्वीकार है हमें।
गुजर जाती है ज़िन्दगी यूँ ही गुजर रहे हैं पल,
कोई हमसफ़र मिले या न मिले अकेला ही चल।
ये अकेलापन मुझे बहुत सताने लगी है,
तेरी बेरुखी अब मुझे तड़पाने लगी है।
कोई अपना छोड़ गया है मुझे,
उसी के इंतेजार में तड़प रहा हु,
उसे जरा भी याद नहीं आती मेरी,
और मैं उसी की यादो में मर रहा हु।
अब क्या कहु वो किसी और की नसीब थी,
साथ मेरे बैठी थी पर किसी और के करीब थी।
दो कदम साथ चल लेने से,
यहां कोई हमसफ़र नहीं बनता,
प्यार भरी बाते कर लेने से,
यहां कोई हमदर्द नहीं बनता।
अब अजनबी सा अपना वजूद लगता है,
सब साथ है फिर भी अकेला सा लगता है।
उदास रहता हूं मैं इन हजारों के बीच,
मानो जैसे चांद रहता हैं सितारों के बीच।
खुद के सामने किसी और को गले लगाते हुए देखा है,
हां, मैंने अपनी मोहब्बत को खुद से दूर जाते हुए देखा है।
वक़्त के साथ कोई दिल से निकल जाते है,
बिना कुछ कहे ही बहुत दूर चले जाते है,
कोई भरोसा नहीं ऐसे इन्सान का जो,
अपने वादे को बिच राहो में ही छोड़ जाते है।
अकेलेपन का हर एक आँसू पीना होता है,
अकेले ही सहना और अकेले ही रहना होता है।
वो तेरे खत, तेरी तस्वीर और वो सूखे फूल,
ऐसा लगता है कि प्यार करके कर दी बड़ी भूल।
आज मेरा भी मन उदास है,
कल उसका भी मन बेहाल होगा,
जिसके लिए उसने ऐसा किया,
कल उसका भी वही हाल होगा।
वो बिछड़कर दिलो के रिश्ते खत्म कर गए,
क्या कमी थी कि इस मोहब्बत अधूरा कर गए।
मत कर किसी से इतनी मोहब्बत ये दिल,
प्यार का दर्द तू सेह न पाएगा,
टूट जाएगा किसी अपनो के ही हाथो,
किसने तोडा ये भी केह न पाएगा।
पहले परछाई में भी तुम साथ नज़र आती थी,
अब देखता हु परछाई तो सिर्फ तन्हाई नज़र आती है।
अपने ज़ख्म खुद ही खरोंचता रहता हूँ,
जब भी तन्हा होता हूँ तो रोता रहता हूँ।
मैं जैसा हु वैसा मुझे रहने दे,
इन हवाओ के जैसे बहने दे,
तन्हा सा एक मुसाफिर हूँ मैं,
अब मुझे तन्हा ही तू रहने दे।
न किसी का साथ, न सहारा है कोई,
न हम है किसी के न हमारा है कोई।