“किसी की अच्छाई का इतना भी फायदा मत उठाओ !
कि वो बुरा बनने के लिए मजबूर हो जाये ।

” बहाना कोई तो दे ऐ जिंदगी !
की जीने के लिए मजबूर हो जाऊँ ।

वो हमेशा बात बनाती क्यों थी,
मेरी झुठी कसम खाती क्यों थी,
मजबूरियों का बहाना बना कर
मुझ से दामन छुड़ाती क्यों थी !

कई लोग तो बस दिखाते हैं अमीरी,
समझते नहीं हैं दूसरों की मजबूरी ।

मजबूर इस दिल की धड़कन
तुम सुनने की कोशिश तो करते,
जा रहा हूं दूर तुम्हारी जिंदगी से
मुझे रोकने का दिखावा तो करते।

“मैं बोलता हूँ तो इल्जाम है बगावत का,
मैं चुप रहूँ तो बड़ी बेबसी सी होती है ।

कितने मजबूर हैं हम प्यार के हाथों,
ना तुझे पाने की औकात,
ना तुझे खोने का हौसला !

नहीं कर सकता तुम्हारी सारी इच्छाएं पूरी,
जरा समझा करो तुम मेरी मजबुरी !

अपने टूटे हुए सपनों को बहुत जोड़ा,
वक्त और हालत ने मुझे बहुत तोड़ा,
बेरोजगारी इतने दिन तक साथ रही की,
मजबूरी में हमने शहर छोड़ा !

हमने खुदा से बोला वो छोड़ के चले गये !
न जाने उनकी क्या मजबूरी थी !
खुदा ने कहा इसमें उसका कोई कसूर नहीं !
ये कहानी तो मैंने लिखी ही अधूरी थी ।

मजबूरी हैं सांसों की जो चल रही है,
वरना जिंदगी तो कब की थम गई हैं !

क्या गिला करें तेरी मजबूरियों का हम,
तू भी इंसान है कोई खुदा तो नहीं,
मेरा वक्त जो होता मेरे मुनासिब,
मजबूरियों को बेच कर तेरा दिल खरीद लेता !

किसी गिरे इन्सान को उठाने आये या ना आये,
ये जमाने वाले मजबुरी में पड़े इंसान का फायदा,
उठाने जरुर आयेंगे !

जीने की चाह थी पर मजबूर थे कितने,
तलाश थी हमें तुम्हारी पर तुम दूर थे कितने ।

किसी की अच्छाई का इतना फायदा न उठायें,
कि वो बुरा बनने के लिए मजबूर हो जाए ।

तुम बेवफा नहीं ये तो धड़कने भी कहती हैं,
अपनी मजबूरी का एक पैगाम तो भेज देते !

मोहब्बत किस को कहते हैं,
मोहब्बत कैसी होती हैं,
तेरा मजबूर कर देना,
मेरा मजबूर हो जाना ।

तुम बेवफा नहीं थे ये मैं भी जान गया होता
कभी तुमने अपनी मजबूरी बताई तो होती ।

ये न समझ के मैं भूल गया हूँ तुझे,
तेरी खुशबू मेरी सांसो में आज भी है,
मजबूरी ने निभाने न दी मोहब्बत,
सच्चाई तो मेरी वफा में आज भी है !

गरीब अक्सर तबियत का बहाना बनाकर,
मजबूरियाँ छुपा जाते हैं !