आज फिर मैं आपसे एक वादा करना चाहूंगी,
जिंदगी का हर लम्हा आपके साथ जीना चाहूंगी,
भले ही ये जिंदगी आपके साथ शुरू न हुईं हो,
पर अब पूरी जिंदगी आपके साथ ही जीना चाहूंगी।
कबूल हो गई हर ख्वाहिशें हमारी,
पा लिया जो हमने चाहत तुम्हारी,
अब नही दुआ दिल में हमारे कुछ भी,
जब से मिल गई है हमे ज़िन्दगी तुम्हारी।
मेरी हर ख़ुशी और हर बात तेरी हैं,
साँसों में छुपी ये साँस तेरी हैं,
दो पल भी नही रह सकते तेरे बिन,
धड़कनों की धड़कती हर आवाज भी तेरी हैं।
जब वो इश्क़ करते हैं तो हर पल अच्छा सा लगता हैं,
शरारतें कुछ होती हैं और प्यार भी सच्चा सा लगता है।
मेरी हर सांस में सनम बस नाम तेरा,
मेरी हर धड़कन की आवाज़ हो तुम,
तुमसे ही अमर है सुहाग मेरा,
मेरी मोहब्बत के सरताज़ हो तुम।
जिंदगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते,
कफन भी लेते है तो अपनी जिंदगी देकर।
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल,
जब आँख से ही न टपका तो फिर लहू क्या है।
मौत पे भी मुझे यकीन है,
तुम पर भी ऐतबार है,
देखना है पहले कौन आता है,
हमें दोनों का इंतजार है।
हाथों की लकीरों पे मत जा ऐ गालिब,
नसीब उनके भी होते है जिनके हाथ नहीं होते।
वो उम्र भर कहते रहे तुम्हारे सीने में दिल नहीं,
दिल का दौरा क्या पड़ा ये दाग भी धुल गया।
दुःख दे कर सवाल करते हो,
तुम भी ग़ालिब कमाल करते हो।
हमें पता है तुम कहीं और के मुसाफिर हो,
हमारा शहर तो बस यूँ ही रास्ते में आया था।
दर्द हो दिल में तो दवा कीजे,
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजे।
हम तो फना हो गए उसकी आंखे देखकर गालिब,
न जाने वो आइना कैसे देखते होंगे।
उनको देखने से जो आ जाती है मुँह पर रौनक,
वो समझते हैं की बीमार का हाल अच्छा है।
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
दिल की खुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है।
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है,
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है।
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पर दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।
कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता,
तुम ना होते ना सही ज़िक्र तुम्हारा होता।
मिर्जा गालिब 19वीं सदी में भारतीय उपमहाद्वीप के प्रसिद्ध उर्दू और फारसी कवि थे। इनका जन्म 27 दिसंबर सन 1797 में हुआ और 15 फरवरी सन 1869 में इनकी मृत्यु हो गयी थी। लेकिन आज भी लोग इनकी शायरी सुनना तथा पढना पसंद करते हैं। इसीलिए आज हम इस पोस्ट में Mirza Ghalib Ki Shayari लायें हैं, जो आपको बहुत पसंद आएंगे।